Life Journey

अद्वितीय वाग्मी, विनम्रता एवं निरभिमानता की साक्षात् मूर्ति, संघर्षशील तथा समर्पित वैदिक ज्ञान प्रचारक, कुशल पत्रकार, परमार्थी, निःस्वार्थी आर्यनेता, निर्भीक समाज सुधारक, उच्चकोटि के संगठनकर्ता, बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी, वैदिक मनीषी, युवा हृदय सम्राट पूज्य स्वामी आर्यवेश जी विद्वान् ही नहीं, लेखक ही नहीं अपितु महर्षि दयानन्द और वैदिक धर्म में अनन्य निष्ठा रखने वाले विशिष्ट गुण सम्पन्न आर्य समाज के ऐसे मूर्धन्य संन्यासी हैं जिनके जीवन व कार्यों से न केवल देश के लोग अपितु विदेशी जन भी अत्यधिक प्रभावित हैं। बी.ए., एल.एल.बी., आनर्स हिन्दी, कई भाषाओं के जानकार तथा भाषा विज्ञान में पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा प्राप्त करने वाले श्री जगवीर सिंह एडवोकेट (पूर्व नाम) के नाम से प्रसिद्ध एवं बचपन से ही वैदिक विचारधारा से संस्कारित तथा समाज के समक्ष उत्तम आदर्शों को प्रस्तुत करने वाले स्वामी आर्यवेश जी ने आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करने का निश्चय करके युवा पीढ़ी को देशभक्त, चरित्रवान तथा आर्य समाज की विचारधारा से ओत-प्रोत करने का संकल्प लिया तथा एक जीवनदानी के रूप में आर्य समाज के युवा संगठन सार्वदेशिक आर्य युवक परिषद् के माध्यम से अपने आपको लोक कल्याण के लिए समर्पित कर दिया। हरियाणा प्रान्त के रोहतक जिले के ग्राम खरकड़ा में महाशय अमर सिंह जी आर्य एवं श्रीमती प्यारी देवी जी के सबसे छोटे पुत्र के रूप में जन्में श्री जगवीर सिंह जी को आर्य समाज के संस्कार अपने परिवार एवं विशेषतः अपने पूज्य पिताश्री से मिले। आपके पिता जी आर्य समाज के कर्मठ कार्यकर्ता रहे तथा उन्होंने अपने क्षेत्र में आर्य समाज के संगठन को सक्रिय रखते हुए निरन्तर वैदिक विचारधारा की मशाल को जलाये रखा। उनका जीवन अत्यन्त सात्विक था। दैनिक यज्ञ करना उनकी दिनचर्या का महत्त्वपूर्ण कार्य रहा। वे एक अच्छे किसान होने के साथ-साथ अच्छे वैद्य भी थे। लाहौर से उन्होंने वैद्यक का प्रमाण पत्र प्राप्त किया हुआ था। सामान्य पढ़े-लिखे होने के बावजूद वे अत्यन्त स्वाध्यायशील भी थे। अपने गाँव की आर्य समाज के वे लम्बे समय तक प्रधान पद पर कार्यरत रहे तथा वर्षों तक आर्य समाज की ओर से आर्य कन्या पाठशाला भी उनकी देख-रेख में चली। पाठशाला का सुन्दर भवन भी गाँव में बनाया हुआ था जिसमें 6 कमरे तथा खुला मैदान भी था जो चारदिवारी से घिरा हुआ था। गाँव की आर्य समाज के वार्षिकोत्सव अत्यन्त समारोह पूर्वक आयोजित किये जाते थे जिनमें आर्य जगत् के उच्चकोटि के विद्वान, संन्यासी एवं भजनोपदेशक आया करते थे। महाशय अमर सिंह के घर पर उत्सव के दिनों में विशेष चहल-पहल रहती थी, क्योंकि उत्सव में आने वाले उपदेशकों व आस-पास के आर्यजनों एवं आर्य कन्या पाठशालाओं तथा आर्य स्कूलों के विद्यार्थियों के भोजनादि की पूरी व्यवस्था उनके घर पर ही होती थी। घर का पूरा वातावरण उत्सवमय हो जाता था। गाँव के उत्सव में महात्मा आनन्द स्वामी, स्वामी ओमानन्द, स्वामी नित्यानन्द, स्वामी विद्यानन्द, स्वामी इन्द्रवेश, स्वामी अग्निवेश, स्वामी चन्द्रवेश, स्वामी योगानन्द आदि विख्यात संन्यासी एवं स्वामी भीष्म जी महाराज, कुंवर जौहरी सिंह, पं. प्रभुदयाल, पं. भूराराम वानप्रस्थी, श्री पृथ्वी सिंह बेधड़क, श्री सहदेव बेधड़क, श्री सरदार सिंह तूफान, श्री सुमेर सिंह आर्य आदि भजनोपदेशक प्रायः आया करते थे। इसी वातावरण से स्वामी आर्यवेश (जगवीर सिंह) को आर्य समाज के लिए जीवन लगाने की प्रेरणा मिली। स्वामी जी के पूज्य पिता जी हिन्दी आन्दोलन व गौरक्षा आन्दोलन में जेल गये थे तथा उन्होंने अपने गाँव के 35 सत्याग्रहियों का नेतृत्व करते हुए हिन्दी आन्दोलन में सत्याग्रह किया था और 6 महीने तक हिसार की जेल में बन्द रहे थे। उन्होंने अपने सुपुत्र श्री जगवीर सिंह को संन्यास दीक्षा के समय प्रसन्नता पूर्वक आशीर्वाद देकर आर्य समाज को एक तेजस्वी संन्यासी समर्पित कर महान त्याग का परिचय दिया। उनका स्वर्गवास 100 वर्ष की आयु पूर्ण करने के पश्चात् हुआ। उनका जीवन अत्यन्त आदर्श, सात्विक एवं परोपकारी था। स्वामी जी की पूज्या माता श्रीमती प्यारी देवी अत्यन्त सात्विक, धार्मिक, सुहृदय एवं उदारता आदि गुणों से सम्पन्न गृहिणी थीं। अपने भाई- बहनों में सबसे छोटे होने के नाते स्वामी जी को माता जी का लाड़-प्यार एवं स्नेह भरपूर मिला। माँ का सर्वाधिक प्यार स्वामी जी को ही प्राप्त हुआ। बचपन में ही स्वामी जी का समाज सेवा की ओर रूझान था जो कालान्तर में बढ़ता गया। उनकी सामाजिक जीवन की यात्रा तब शुरू हुई जब वे 10वीं कक्षा के छात्र थे उस समय उनका सम्पर्क युवाओं के प्रेरणा स्रोत ब्र. इन्द्रदेव मेधार्थी (स्वामी इन्द्रवेश जी का संन्यास पूर्व का नाम) से हुआ और मेधार्थी जी के चुम्बकीय व्यक्तित्व ने उन्हें अत्यधिक प्रभावित किया। थोड़े दिनों के अन्दर ही वे स्वामी इन्द्रवेश जी के अति निकट कार्यकर्ताओं में शामिल हो गये और एक जीवनदानी के रूप में कार्य करना प्रारम्भ कर दिया। उसी दौरान उनका स्वामी अग्निवेश जी से आत्मीय सम्बन्ध बन गया और स्वामी आर्यवेश (श्री जगवीर सिंह) सार्वदेशिक आर्य युवक परिषद् के साथ जुड़ गये। परिषद् के तत्वावधान में 1970 में आयोजित करनाल के राष्ट्रीय शिविर में उन्होंने भी भाग लिया तथा वहीं से व्यायाम शिक्षक बनकर कार्य करना प्रारम्भ कर दिया। सन् 1974 में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से एल.एल.बी. के छात्र के रूप में आपने छात्रसंघ अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ा तथा लोकनायक जयप्रकाश नारायण के आन्दोलन में अग्रणी भूमिका निभाने के कारण आपको विश्वविद्यालय से निष्कासित कर दिया गया। बाद में जनता सरकार आने के बाद राज्यपाल महोदय ने निष्कासन रद्द किया तथा आपने एल.एल.बी. की पढ़ाई पूरी की। सन् 1974 से लेकर वर्तमान तक सार्वदेशिक आर्य युवक परिषद् का नेतृत्व, राजधर्म पत्रिका का निरन्तर 50 वर्षों से सम्पादन व प्रकाशन आप कर रहे हैं। आपने अनेक राष्ट्रीय स्तर के व प्रान्तीय स्तर के कार्यक्रमों यथा शिविरों, जनचेतना यात्राओं, सम्मेलनों, आन्दोलनों एवं अभियानों का संयोजन बड़ी कुशलता के साथ किया है। आर्य समाज द्वारा चलाये जा रहे बेटी बचाओ अभियान, शराबबन्दी आन्दोलन व पाखण्ड विरोधी अभियान आदि का मुख्य संयोजन आपने ही किया। आर्य समाज के प्रचार व प्रसार के लिए आपने अमेरिका, कनेडा, दक्षिण अफ्रीका, केनिया, जर्मनी, हालैण्ड, स्वीटजरलैंड, फ्रांस, बेल्जियम, जापान, दुबई, नेपाल, मैक्सिको आदि देशों की यात्राएँ की है। आप महर्षि दयानन्द धाम, अमृतसर के ट्रस्टी, गुरुकुल लाढ़ौत, रोहतक के उपप्रधान, गुरुकुल सिंहपुरा, सुन्दरपुर रोहतक के संरक्षक, स्वामी इन्द्रवेश विद्यापीठ टिटौली, रोहतक के अध्यक्ष, सार्वदेशिक आर्य युवक परिषद् के प्रधान एवं वर्तमान में सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा के प्रधान पद को सुशोभित कर रहे हैं। इससे पूर्व आप आर्य प्रतिनिधि सभा पंजाब के मंत्री, अखिल भारतीय नशाबन्दी परिषद् के कार्यकारी प्रधान एवं बंधुआ मुक्ति मोर्चा के कार्यकारी प्रधान पद पर भी प्रतिष्ठित हो चुके हैं। आपने अब तक 1400 ब्रह्मचर्य, व्यायाम प्रशिक्षण एवं युवा निर्माण शिविरों के माध्यम से लगभग 13 लाख युवाओं को आर्य समाज की विचारधारा से परिचित कराया है। पिछले 40 वर्षों से आप स्वामी इन्द्रवेश जी महाराज की प्रेरणा से प्रतिवर्ष सक्रिय कार्यकर्ताओं के लिए कैप्सूल कैम्प लगाकर साधना, स्वाध्याय एवं सिद्धान्त प्रशिक्षण द्वारा कार्यकर्ताओं में नई ऊर्जा का संचार करते आ रहे हैं। सन् 2006 में पूज्य स्वामी इन्द्रवेश जी महाराज के देहावसान के पश्चात् उनकी स्मृति में आयोजित विशाल प्रेरणा सभा के अवसर पर 18 जून, 2006 को आर्य समाज के तेजस्वी क्रांतिकारी, विश्व विख्यात संन्यासी तथा स्वामी इन्द्रवेश जी के अनन्य सहयोगी पूज्य स्वामी अग्निवेश जी से संन्यास की दीक्षा लेकर आप जगवीर सिंह से स्वामी आर्यवेश बने। स्वामी अग्निवेश जी ने अपने जीवन में सबसे पहली संन्यास दीक्षा आपको ही दी थी। इससे पहले किसी को भी उन्होंने संन्यास दीक्षा नहीं दी। आपकी संन्यास दीक्षा के पौरोहित्य का दायित्व प्रसिद्ध वैदिक विद्वान् आचार्य सुदर्शन देव जी ने संभाला था तथा हजारों आर्यजन व सैकड़ों संन्यासी व विद्वान साक्षी बने थे।

कर्मठता तथा पुरुषार्थ के बल पर देश और समाज के लिए स्वामी आर्यवेश जी ने अनेकों ऐतिहासिक कार्य करके सुविख्यात विभूति के रूप में अपने को प्रतिष्ठित किया। वर्ष 1972 में आपने हरियाणा में अंग्रेजी हटाओ रोजगार दिलाओ आन्दोलन का सफल नेतृत्व किया और प्रभावशाली जनआन्दोलन किया। वर्ष 1973-74 में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में रैंगिग एवं मांसाहार विरोधी आन्दोलन का आपने नेतृत्व किया और उसमें सफलता प्राप्त की। वर्ष 1974 में हरियाणा के छात्र आन्दोलन में सक्रिय भूमिका निभाई और जे.पी. आन्दोलन में छात्र संघर्ष समिति का नेतृत्व किया। वर्ष 1975 में आर्य समाज के युवा संगठन सार्वदेशिक आर्य युवक परिषद् के अध्यक्ष पद को सुशोभित किया तथा निरन्तर वर्तमान समय तक अध्यक्ष पद पर कार्य करते हुए ‘युवा हृदय सम्राट’ के रूप में प्रतिष्ठित हैं। जून, 1980 में दयानन्द काWW‚लेज हिसार में 10 दिवसीय ऐतिहासिक युवक शिविर का संयोजन किया जिसमें 1500 युवकों ने भाग लिया था। वर्ष 1982 में हिसार से सोनीपत तक की 7 दिवसीय नशा विरोधी पद यात्रा का नेतृत्व किया। इस यात्रा में भारी संख्या में युवकों ने भाग लिया और हजारों लोगों ने नशा छोड़ने का संकल्प लिया। सन् 1978 से 1985 तक आप गुरुकुल सिंहपुरा रोहतक, हरियाणा के मुख्याधिष्ठाता के पद को सुशोभित करते रहे। वर्ष 1984 में 1500 किलोमीटर की मोटरसाइकिल यात्रा का आपने नेतृत्व किया। इस यात्रा के माध्यम से आपने उग्रवाद के विरुद्ध अलख जगाते हुए युवाओं को जागृत किया। वर्ष 1987 में स्वामी अग्निवेश जी के नेतृत्व में दिल्ली से देवराला तक आयोजित सती प्रथा विरोधी ऐतिहासिक पदयात्रा का आपने कुशल संयोजन किया जिसके फलस्वरूप आजादी के बाद पहली बार सती प्रथा के विरुद्ध देश में कानून बना। वर्ष 1986 में ऐतिहासिक कुम्भ मेला हरिद्वार में चतुर्वेद पारायण महायज्ञ एवं विशाल वेद प्रचार शिविर का सफल संयोजन किया। इस अवसर पर पाखण्ड खण्डिनी पताका फहराना, शास्त्रार्थ की चुनौती, विशाल पाखण्ड विरोधी शोभायात्रा एवं विविध सम्मेलनों का आयोजन करके आपने पूरे मेले में आर्य समाज की धाक जमाकर ऐतिहासिक कार्य किया। 45 दिन चले इस आयोजन में देश भर के लगभग एक लाख लोगों ने भाग लिया था। लगभग 60 साल के बाद सन् 1986 में वेद प्रचार का यह पहला शिविर लगा था जो पौराणिकों के प्रबल विरोध के बावजूद आपने साहस के साथ सम्भाला। शिविर स्वामी इन्द्रवेश जी की अध्यक्षता में लगाया गया था। वर्ष 1992 में अर्द्धकुम्भ मेले के अवसर पर विशाल वेद प्रचार शिविर का आयोजन हरिद्वार में किया गया। वर्ष 1998 के पूर्ण कुम्भ, वर्ष 2004 के अर्द्धकुम्भ, वर्ष 2010 के पूर्ण कुम्भ तथा 2016 के अर्धकुम्भ मेले में भी हरिद्वार में विशाल वेद प्रचार शिविरों का संयोजन आपने किया तथा नशा विरोधी अभियान चलाकर नशा न करने का हजारों लोगों को संकल्प दिलवाया। इसी प्रकार वर्ष 1992 से 1994 तक आपने हरियाणा में शराबबन्दी आन्दोलन का संयोजन किया तथा शराबबन्दी लागू करवाने में सफलता प्राप्त की। वस्तुतः इस संसार में उसी मनुष्य का जन्म लेना सार्थक है जिसके जन्म लेने से देश, जाति और समाज का अभ्युदय होता है, कुल पवित्र होता है, जननी कृतार्थ होती है और वसुन्धरा पुण्यवती कहलाती है। स्वामी आर्यवेश जी का सम्पूर्ण जीवन यज्ञीय जीवन का प्रतीक है और विविध एषणाओं से नितान्त परे है। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि वे सर्वमेघ की दीक्षा से दीक्षित हैं। सचमुच में स्वामी जी का परोपकारमय विशाल व्यक्तित्व बड़ा ही चमत्कृत और लोक कल्याण की भावना से ओत-प्रोत है। आपने आर्य समाज के आन्दोलनकारी स्वरूप व विश्व मानवता के प्रति इसके समर्पित स्वरूप को न सिर्फ क्षुण बनाये रखा है अपितु इसे नई ऊँचाईयों तक पहुँचाया है। स्वामी आर्यवेश जी जिस दीवानगी के साथ आर्य समाज की सेवा में संलग्न हैं वह अद्भुत तथा अकल्पनीय है। निरन्तर अहर्निश 18 घण्टे आर्य समाज का ही कार्य करना आपकी विशेषता है। वर्ष 2006 में संन्यास लेने के उपरान्त स्वामी जी ने सन् 2009 से 2013 तक सार्वदेशिक सभा के मन्त्री व सन् 2014 से 2022 तक सभा के प्रधान पद का दायित्व सम्भाला। इस कार्यकाल में स्वामी जी के नेतृत्व में विविध अन्तरर्राष्ट्रीय सम्मेलन व प्रचार के कार्यक्रम आयोजित हुये। सार्वदेशिक सभा के तत्वावधान एवं स्वामी आर्यवश जी के नेतृत्व में निम्नलिखित महत्वपूर्ण आयोजन सम्पन्न हुये।

1. सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा की स्थापना के सौ वर्ष पूर्ण होने पर सन् 2009 में रामलीला मैदान नई दिल्ली में भव्य शताब्दी समारोह किया गया।

2. वर्ष 2010 के महाकुम्भ मेला हरिद्वार में एक मास का वेद प्रचार शिविर जिसमे पाखण्ड खण्डिनी पताका फहराई गई, चतुर्वेद पारायण यज्ञ आयोजित हुआ, शास्त्रार्थ की चुनौती दी गई, विभिन्न सामाजिक समस्याओ पर महामण्डलेश्वरों, शंकराचार्यो एवं अन्य मतावलम्बियों के साथ गोष्ठियों का आयोजन किया गया ।

3. चारो वेदों के हिन्दी भाष्य को प्रकाशित कराकर हजारों घरों तक पहुंचाया।

4. सन् 2012 में अन्तर्राष्ट्रीय आर्य प्रतिनिधि सम्मेलन का दिल्ली में भव्य आयोजन हुआ जिसमें देश विदेश के हजारों आर्यों ने भाग लिया।

5. सन् 2014 में हैदराबाद में अन्तर्राष्ट्रीय बुद्धिजीवी सम्मेलन आयोजित किया गया जिसमें आर्य समाज के सभी घटकों ने भाग लिया।

6. सन् 2016 में अर्धकुम्भ मेला हरिद्वार में विशाल वेद प्रचार शिविर लगाया गया, जिसके माध्यम से सभी प्रकार के नशों के विरुद्ध शोभायात्राऐं, सम्मेलन व मानव श्रृंखला (पांच किलोमीटर लम्बी) बनाई गई। दस हजार लोगों को गंगा की आरती के अवसर पर पौराणिक महामण्डलेश्वरों के सहयोग से शराब व अन्य नशे छोड़ने की प्रतिज्ञा करवाई गयी।

7. सन् 2018 में अन्तर्राष्ट्रीय गुरुकुल महासम्मेलन का गुरुकुल कांगड़ी हरिद्वार में विशाल आयोजन किया गया। इसका उद्घाटन योगगुरु स्वामी रामदेव जी महाराज ने किया। सम्मेलन में लगभग पांच हजार ब्रह्मचारियो एवं ब्रह्मचारिणियों ने तथा पच्चीस हजार आर्यों ने भाग लिया। सभी आचार्यों व आचार्याओं को सम्मानित किया गया

8. कोरोना काल के दौरान आर्य समाज साऊथ अफ्रीका तथा आर्यप्रतिनिधि सभा ईस्ट अफ्रीका के सहयोग से निःशुल्क आक्सीजन बैंक स्थापित कर पीड़ित लोगों की मदद की गयी।

9. उपरोक्त एतिहासिक कार्यक्रमों के अतिरिक्त कन्या भ्रूण हत्या, नशाखोरी , धार्मिक अन्धविश्वास व पाखण्ड के विरुद्ध जन चेतना यात्राओं सम्मेलनों संगोष्ठियों, शिविरो आदि के द्वारा लाखो लोगो तक वैदिक सिद्धान्तों को पहुंचाने का कार्य किया है तथा अब भी चल रहा है।

आर्य समाज के कार्यों तथा युवाओं को संस्कारित करने का आपमें एक जुनून पैदा हो गया है। आपका मानना है कि देश की वास्तविक प्रगति तब तक नहीं हो सकती है जब तक कि बच्चों और युवाओं को संस्कारित करके उनके अन्दर समाजसेवा, देशसेवा, मातृ-पितृ भक्ति और सच्चरित्रता के गुण पैदा न कर दिये जायें। पूरे देश में हजारों युवा निर्माण शिविरों का आयोजन कर युवा पीढ़ी को ब्रह्मचर्य, देशभक्ति, आस्तिकता एवं आर्य विचारों से अनुप्राणित करने का काम युद्ध स्तर पर आपने चला रखा है। सैकड़ों जन-चेतना यात्राओं का आयोजन कर आपने लाखों लोगों में नशाखोरी, धार्मिक पाखण्ड, कन्या भ्रूण हत्या जैसी सामाजिक बुराईयों से लड़ने का जज्बा भरा है। 2005 में कन्या भ्रूण हत्या के विरुद्ध टंकारा से अमृतसर की 15 दिन तक चली ऐतिहासिक ‘बेटी बचाओ जन-चेतना यात्रा’ जो गुजरात, राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा, चण्डीगढ़ व पंजाब प्रान्त के सैकड़ों नगरों व गांवों से जागृति करते हुए निकाली गई थी, किसे स्मरण नहीं होगी। इस यात्रा के फलस्वरूप आज पूरे देश में कन्या भ्रूण हत्या का विरोध किया जा रहा है और लोग जागरूक हो रहे हैं। इससे पूर्व कन्या भ्रूण की पेट में हत्या कर देने की जघन्य प्रवृत्ति से सरकार व समाज न केवल अपरिचित था बल्कि उदासीन भी था। वर्ष 2006 में नरवाना से रोहतक तक लगभग 15 जिलों की प्रान्तीय जन-चेतना यात्रा, 2008 में सोनीपत से झज्जर लगभग 12 जिलों तथा फरीदाबाद से रोहतक तक लगभग 14 जिलों की प्रान्तीय जन-चेतना यात्रा का हरियाणा में आयोजन करके आपने बेटी बचाओ अभियान को जन-जन तक पहुचाने का कार्य किया। वर्ष 2008 में ही पांच राष्ट्रीय युवा चरित्र निर्माण शिविर लगाये गये जिनमें हजारों युवक तथा युवतियों को संस्कारित करने का कार्य किया गया। 2006 में जीन्द में प्रान्तीय आर्य महासम्मेलन, 2007 में स्वामी इन्द्रवेश जी की पहली पुण्यतिथि के अवसर पर छोटूराम स्टेडियम रोहतक में 1857 की क्रांति के 150 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में अत्यन्त भव्य आयोजन स्वामी आर्यवेश जी के संयोजन में सम्पन्न हुआ जिसमें 15 हजार की उपस्थिति थी। 2007 में रोहतक में बेटियों का शिविर लगाया गया जिसमें 1200 कन्याओं ने भाग लिया। 2008 में हैदराबाद में राष्ट्रीय आर्य महासम्मेलन, भारत की राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल की अध्यक्षता में किया गया। 2008 में ही आर्य युवा सम्मेलन भिवानी में आयोजित किया गया जिसमें 5 हजार युवाओं को संकल्प दिलवाये गये। 2009 में 13 मार्च से 23 मार्च तक जीन्द में प्रान्तीय आर्य महासम्मेलन तथा बेटी बचाओ अभियान के अन्तर्गत कार्यक्रम आयोजित किये। 23 नवम्बर, 2010 में प्रान्तीय आर्य युवा सम्मेलन दून स्कूल, सोनीपत में आयोजित हुआ जिसमें 4 हजार युवाओं ने भाग लिया। 23 नवम्बर, 2014 को रोहतक में आर्य युवा महासम्मेलन जिसमें 10 हजार युवाओं ने भाग लिया था जिसमें स्वामी आर्यवेश जी ने सभी को सामाजिक बुराईयों से दूर रहने का संकल्प दिलवाया। इसी प्रकार हरिद्वार से होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) की छः राज्यों की विशाल जन-चेतना यात्रा आपके नेतृत्व में निकाली गई जिसमें लगभग 200 सभाएँ करके लाखों लोगों को जागरूक किया गया। अभी 5 फरवरी, 2018 से 11 फरवरी, 2018 तक सोनीपत से सिरसा तक आठ जिलों की नशाखोरी, धार्मिक पाखण्ड, कन्या भ्रूण हत्या विरोधी जनचेतना यात्रा का अभूतपूर्व आयोजन स्वामी आर्यवेश जी के नेतृत्व में किया गया। हरिद्वार, गुरुकुल इन्द्रप्रस्थ, महात्मा नारायण स्वामी आश्रम, तल्ला रामगढ़, गुरुकुल टटेसर, तपोवन आश्रम, खेड़ला गुड़गांव आदि स्थानों पर व्यायाम शिक्षक-प्रशिक्षण शिविरों का आयोजन तथा मसूरी, नैनीताल, चम्बा, हरिद्वार, तल्ला रामगढ़, कण्व आश्रम, गुरुकुल कांगड़ी हरिद्वार आदि स्थानों पर निरन्तर कार्यकर्ता कैप्सूल शिविरों का आयोजन आपके निर्देशन, संरक्षण तथा अध्यक्षता में प्रतिवर्ष ग्रीष्मकालीन छुट्टियों में चल रहा है। सन् 1997 में अमर शहीद पं. रामप्रसाद बिस्मिल की जन्मशताब्दी के अवसर पर उनके जन्म स्थान शाहजहांपुर में राष्ट्रीय स्तर का भव्य समारोह आयोजित किया गया जिसमें सरदार कुलतार सिंह (शहीदे आजम भगत सिंह के भतीजे) मुख्य अतिथि थे। सार्वदेशिक आर्य युवक परिषद् के माध्यम से आपने सैकड़ों योग एवं व्यायाम शिक्षक तैयार किये हैं जो पूरे देश में युवाओं के शिविर लगाकर युवा पीढ़ी को सुसंस्कृत बनाने में प्रयत्नशील हैं। स्वामी आर्यवेश जी तेजस्वी व्यक्तित्व के धनी हैं। वैदिक धर्म में उनकी पूर्ण आस्था है इसलिए वे ईमानदारी से प्रचार कार्य में समर्पित रहते हैं। उनकी यह निष्ठा समाज के प्रत्येक क्षेत्र में कार्य करने का उत्साह प्रदान करती है। स्वामी जी जहाँ शारीरिक दृष्टि से अत्यन्त आकर्षक व्यक्तित्व के धनी हैं वहीं उनमें विलक्षण आत्मविश्वास है। वे सामाजिक रूप में कमाल के संगठनकर्ता और आत्मिक रूप में सात्विकता से ओत-प्रोत हैं। आर्य समाज के सिद्धान्तों व मन्तव्यों को राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के प्रामाणिक मंचों पर पहुँचाने व प्रस्तुत करने के लिए वर्तमान में प्रचलित प्रभावी इलेक्ट्रानिक एवं सोशल मीडिया के माध्यमों का उपयोग कर इण्टरनेट, फेसबुक, ट्विटर, वाटसएप, वैबसाइट आदि माध्यमों से पूरे विश्व में वेद ज्ञान द्वारा सभी समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करने के लिए आप प्रयत्नशील हैं। आपके संरक्षण में आपके विशिष्ट सहयोगी ब्र. दीक्षेन्द्र आर्य (वर्तमान में स्वामी आदित्यवेश जी) ‘मिशन आर्यावर्त न्यूज बुलेटिन’ बड़ी कुशलता के साथ स्वामी इन्द्रवेश विद्यापीठ आश्रम टिटौली से चला रहे हैं। इस बुलेटिन के साथ 12 देशों के लगभग साढ़े तीन लाख लोग अब तक सीधे जुड़ चुके हैं। स्वामी आदित्यवेश जी इसके निदेशक हैं। ‘कृण्वन्तो विश्वमार्यम’ को सार्थक करते हुए देश में ही नहीं अपितु विदेशों में भी आपकी कीर्ति पताका फहरा रही है। आर्य समाज के प्रचारार्थ आप कई बार विदेश यात्राएँ कर चुके हैं। विदेशों में आयोजित अनेकों आर्य महासम्मेलनों में विशेष आमंत्रण पर आपने पधारकर आर्य समाज की दुन्दुभी बजाई है। केन्या में आपने इण्टरनेशनल यूथ कांफ्रेन्स में भारत का प्रतिनिधित्व किया। संयुक्त राष्ट्र संघ के दासता विरोधी सम्मेलन एवं विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा आहूत तम्बाकू विरोधी कांफ्रेन्स में आप जिनेवा गये तथा अपना पक्ष प्रस्तुत किया। इसी तरह दक्षिण अफ्रीका में आर्य प्रतिनिधि सभा द्वारा आयोजित शताब्दी समारोह में भारतीय प्रतिनिधि मण्डल का प्रतिनिधित्व किया। आर्य महासम्मेलन न्यूयार्क में भाग लेने के साथ अमेरिका के ह्युस्टन व बोस्टन, शिकागो, न्यू-जर्सी, कैरी, पेंसिलवानिया, टोरंटो (कनाडा) आदि स्थानों पर आपने आर्य समाज के सिद्धान्तों, मन्तव्यों तथा वेद की पताका फहराने के लिए विशेष वेद प्रचार यात्राएँ कर न केवल आर्य समाज को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया है अपितु विदेशों में आर्य समाज में जान फूंकने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। आर्य समाज के मिशन के प्रचार-प्रसार के लिए उत्कंठा, समर्पण, संकल्प, दृढ़निश्चय, योग्यता व क्षमता अपने हृदय में संजोये स्वामी आर्यवेश जी आर्य समाज को तेजस्वी स्वरूप प्रदान करने के लिए कटिबद्ध हैं। यह अत्यन्त गौरव की बात है कि स्वामी आर्यवेश जी के रूप में भारतीय संस्कृति का जीवन्त स्वरूप हमारे बीच में है। उनका प्रेरक व्यक्तित्व, स्फूर्तिप्रद नेतृत्व एवं उनके द्वारा देश और आर्य समाज के हित में अनेक किये गये आयोजन और आन्दोलन, राष्ट्रीय समस्याओं एवं सामाजिक बुराईयों के विरुद्ध किये गये विशेष प्रयास तथा समय-समय पर व्यक्त किये गये विचार तथा सम्मतियाँ विराटकाल के कागज पर अमिट हस्ताक्षर स्वरूप हैं। आपने अपने प्रतिभा पुंज के प्रकाश से आर्य जगत के विविध कार्यक्रमों को वैदिक धर्म एवं आर्य समाज के सिद्धान्तों के अनुकूल आलोकित किया है। आर्य समाज को संगठित करने के लिए आप अथक प्रयास कर रहे हैं, निरन्तर प्रयत्नशील हैं तथा इस महत्त्वपूर्ण कार्य को करने के लिए कृत संकल्पित हैं।